मैं एक अध्यापिका हूँ | अध्यापन ही मेरी जीवन शैली है |विशेषकर इस जीवन शैली में जीन-जक्क़ुएस रूसो की स्वतंत्रता की विचारधारा से मैं काफी प्रभावित हूँ |शिक्षा में दण्ड से आये हुए अनुशासन को मैं “न” के बराबर मानती हूँ| बच्चों का मन बहुत कोमल होता है |उन्हें दण्ड की नहीं प्यार एवं अपनेपन की जरुरत होती है |
कक्षा में दंड तीन तरीके से इस्तेमाल किया जाता था /है –
1)दण्ड एक ऐसी यातना होती है जो कि शिक्षक बच्चों को अपनी बात मनवाने के लिए देता है |
2)कक्षा में चुप्पी बनाए रखने के लिए शिक्षक दंड को हथियार के रूप में इस्तेमाल करता है |
3)पाठ को रट्टा मारने के लिए भी शिक्षक दंड का प्रयोग करता है |
ऐसे दण्ड से पैदा किये गए अनुशासन से बच्चे डरते है और सीखने में असहाय बन जाते है |कुछ लोगों का मानना होता है की अगर छड़ी न उठाई जाय तो बच्चे बिगड़ जाते है |हमारे गावों में एक पुरानी कहावत थी –
“छड़ी चले घमाघम
विद्या आये छमाछम”
कहते थे कि अगर बच्चों में अच्छी विद्या एवं अच्छे संस्कार डालने है तो छड़ी कस कर पकड़नी चाहिए|ऐसे ही कुछ मास्टर साहब मुझे अभी भी याद है जो बच्चों को प्रताड़ित करने में अपनी वाहवाही समझते थे |
मेरा मानना है कि बच्चों को स्वतंत्र छोड़ना चाहिए ,वे स्वतंत्र रहकर ज्यादा सीख सकते है न कि भय दिखाकर |ऐसा नहीं है कि मैं अनुशासन कि पक्षधर नहीं हूँ |मैं बच्चों में एक विशेष तरह का अनुशासन चाहती हूँ जो कि प्रेम या लगाव से उत्पन्न हो न कि भय से |
कक्षा में कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जिन्हें स्वतंत्र छोड़ दिया जाय तो वे कुछ ज्यादा ही उदंड हो जाते हैं|उनके लिए अनुशासन की स्थापना आत्मप्रेरित रूचि के विकास से ही संभव है|छात्र जिस काम को आत्म विभोर होकर करेगा वहाँ उदंडता का कोई स्थान नहीं होगा|वह स्वाभाविक रूप से अनुशासन में आ जायेगा |जीवन में सफल होने के लिए अनुशासित जीवन जरुरी है परन्तु हम बच्चों को मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताड़ित करके वह अनुशासन नहीं ला सकते|ऐसे अनुशासन से दबाब हटते ही बच्चे शिक्षक की बातों कि अवहेलना शुरू कर देते है |
अनुशासन जीवन में जरूरी है परन्तु पढ़ाई के वक्त बच्चों में भय या दुश्चिंता नहीं होना चाहिए|जिस भी स्कूल में दण्ड या भय को स्थान दिया जाता है वह स्कूल जेल के समान ,शिक्षक जेलर के समान और बच्चे बंदी के समान होते है जो कि जेल से भागने को हर समय तैयार रहते हैं|आजकल तो जेलों में भी प्यार की भाषा बोली जाती है तो स्कूलों में क्यों नही ?
Shilpi Pandey , Hindi Teacher – Tatva Global School
That’s true ji.. Each line what you said is 100% right..
Inspiring words !!!!!!
बहुत खूब लिखा है शिल्पी जी आपने।